23 फरवरी को जल विधान के साथ प्रारंभ होगा श्री धर्मनाथ जिनालय व जिनकुशल सूरी दादाबाड़ी प्रतिष्ठा महोत्सव

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रायपुर। जैन समाज की आस्था का केंद्र धर्मनाथ जिनालय एवं जिनकुशल सूरी दादाबाड़ी का प्रतिष्ठा, अंजन शलाका, दीक्षा दशहानिका महोत्सव गुरुवार से प्रारम्भ हो रहा है। इस अतुलनीय कार्य के शुभारम्भ हेतु खारुन नदी से शुद्ध जल लाया जायेगा इस हेतु खारुन नदी के तट पर गुरुवार को जल विधान महोत्सव रखा गया है। 23 फरवरी को जैन समाज के श्रावक श्राविकाएं पवित्र जल लेने खारुन नदी जाकर जल विधान महोत्सव में शामिल होंगी। उधर महोत्सव की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है। जैन समाज के हर सदस्य के मन में इस प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर भरपूर उत्साह है।

हर शुभ कार्य की शुरूआत जल से ही होता है, इसलिए जल एकत्रीकरण भी विधान महोत्सव के बीच किया जायेगा। छत्तीसगढ़ के आंचल में बहती हुई खारुन माता के शुद्ध जल लेने हेतु महिलायें सूर्योदय के प्रथम प्रकाश में यह विधान करने जावेंगी। इन जलो को अलग अलग मिट्टी एवं धातु के घड़ों में भरकर कपूर आदि औषधियों व मंत्रोचार से पवित्र किया जायेगा और यही जल इस प्रतिष्ठा महोत्सव में विभिन्न विधान व अभिषेक के लिए उपयोग किया जायेगा।
सर्वप्रथम इस जल में दुग्ध आदि मिला कर पंचामृत द्वारा परमात्मा के च्यवन कल्याणक का विधान प्रारम्भ होगा और यहीं से ही इस प्रतिष्ठा महोत्सव की शुरुआत होगी। हर मंगल कार्य के पहलेे बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है खरतरगच्छाधिपति अवन्ति तीर्थोद्धारक आचार्य श्री जिनमणि प्रभ सूरीश्वर जी मा सा, नमिऊण तीर्थ प्रेरक छत्तीसगढ़ श्रृंगार आचार्य श्री जिन पियूष सागर सूरी जी मा.सा. एवं 60 साधु साध्वी भगवंत रायपुर की धर्म धरा पर इस महोत्सव हेतु मंगल प्रवेश कर रहे है। इसी कड़ी में सर्वप्रथम आचार्य भगवतो एवं समस्त साधु साध्वी भगवन्तो का मंगल आशीर्वाद लेकर विभिन्न तीर्थ स्थलों को वंदन करते हुए खारुन नदी के जल से यह विधान प्रारम्भ होगा।

10 दिन तक चलने वह दशानिका महामहोत्सव का हर दिन का विधान उत्सव अपने आप में अतुलनीय है। इस महोत्सव को शब्दों में उकेरा नहीं जा सकता है, इसको तो अपनी आंखों से देखकर ह्रदय में बसाने जैसा है। साइंस कॉलेज मैदान में इसके लिए भव्य रत्नपुरी राज नगर बसाया गया है। नवनिर्मित जिनालय का श्रृंगार श्वेत पाषाण से निर्मित, अनुपम सौन्दर्य की कारीगरी से घड़ाई की हुई, जुगनू की चमक की तरह बने चमकते हुए मार्बल के गलीचे, सर्वोत्कृष्ठ जालीदार तोरण से सजी, अप्रतिम सौंदर्य एवं जीवंत मानव संरचनाओं और संवेदनाओं को संयुक्त करती खम्बो पर शुद्धतम रूप से उकेरी हुई देवियों की प्रतिकृति से किया गया है।


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