हर श्रावक के घर में विराजित हो श्रुत संपत्ति मां जिनवाणी : आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज

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रायपुर। सन्मति नगर फाफाडीह में बुधवार से पुनः चातुर्मासिक प्रवचनमाला की शुरुआत हुई।
आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि हर घर में एक ऐसा कक्ष हो, जिसमें मां जिनवाणी विराजमान हो। जन्म देने वाली मां मृत्यु को संभालने नहीं आएगी,परंतु जन्म, जरा,मृत्यु का क्षय अंत समय में मां जिनवाणी के रसपान से ही होगा। संसार से जाते-जाते यदि मां जिनवाणी को सुन लिया तो समाधि मरण हो जाएगा। देश में ऐसा कोई श्रावक का घर नहीं होना चाहिए, जिस घर में मां जिनवाणी न हो।

आचार्यश्री ने कहा कि हर घर में एक कमरा ऐसा हो जहां आप सुबह शाम एकांत में जाकर बैठ सको,वहां भगवान का नाम ले सको,उस कक्ष में मां जिनवाणी को विराजमान करना। कर्नाटक में एक श्रावक के घर की अलमारी में ग्रंथ रखे थे,उस श्रावक ने बताया था कि स्वामी ये हमारी श्रुत संपत्ति है,ऐसी ही हर घर-घर का श्रावक ये कहे कि हमारी श्रुत संपत्ति है। आप जिनवाणी को कागज मत कहना,ये मोटे-मोटे ग्रंथों को व्यर्थ मत कहना,मोटे मोटे नोटों की गड्डी के पीछे तो पूरे देश में ईडी के छापे पड़ते हैं,जब लोग बचने के लिए इन गड्डियों को रोड तक में फेंक देते हैं। नोटबंदी में तो नजारे खूब दिखे,ये मुद्रा तो छापे पड़ने पर फिक सकती है, लेकिन श्रुत संपत्ति को अंदर धारण किया जाता है।

आचार्यश्री ने कहा कि जब मुनिराजों को घर में आहार देते हो तो परिचय देते हो कि ये हमारी मां है,ये हमारे पिताजी हैं,अबकी बार आहार हो तो एक और परिचय देना कि यह हमारी जिनवाणी मां है। हर घर में एक जिनवाणी विराजमान होना चाहिए, यदि उल्टा सीधा करने का भाव मन में आए तो आपको जिनवाणी दिख जाए और आप वह काम करने से बच जाओ। जिनके घर दादी मां होती है उनके पोते संभल कर रहते हैं कि दादी देख लेगी। ऐसे ही आप मां जिनवाणी विराजमान रखो तो मित्र तुमको भय रहेगा,आपको मां जिनवाणी देख लेगी।

आचार्यश्री ने कहा कि नहीं कहना आज से की वह दरिद्र है जिनके घर में सिक्का नहीं है,जो व्यक्ति धर्म से दरिद्र है,संसार में वह सबसे दुखिया प्राणी है। जिनके घर में खाने को दाना नहीं है, पीने को शुद्ध पानी नहीं हो, रहने को मकान न हो, साथ रहने के लिएअच्छे लोग न मिले, वे धन के दरिद्र नहीं है,वे धर्म के दरिद्री का घर है।

आचार्यश्री ने कहा कि कुछ भी हो जाए प्रभु की देहरी मत छोड़ना और जब तक पिता जीवित है उनके चरण मत छोड़ना। वह यादें मत लाना कि पिता ने मुझे कभी डांटा था, वह याद करना कि पिता ने मुझे बिगड़ने से बचाया था। यह याद नहीं करना कि गुरु जी ने मुझे डांटा था,मैं यही याद करता हूं कि मेरे गुरु ने मुझे दुनिया से बचाया था, जो भी सच्चा शिष्य होगा यही सोचेगा। जो वचन प्रवचन मिले हैं धर्म के प्रभाव से मिले हैं। यदि आपको गुरुओं की सेवा करने का अवसर मिला है तो ये भी धर्म का प्रभाव है। आपको धर्म करने का अवसर मिला है तो ये भी धर्म का प्रभाव है।

आचार्यश्री के फाफाडीह लौटते ही पुनः लौट आई रौनक : मुनिश्री संकल्प सागर जी

मुनिश्री संकल्प सागर जी ने कहा कि जब श्रीराम वनवास के लिए गए थे, तब अयोध्या सुनी हो गई थी। ऐसे ही जब फाफाडीह से आचार्यश्री गए थे तो फाफाडीह सुनी हो गई थी,यहां सुनसान था। जैसे ही आचार्यश्री का संघ यहां आ गया तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी,लोग भी यहां आ गए। जैसे श्रीराम के आने के बाद अयोध्या में पुनः रौनक लौटी थी, वैसे ही फाफाडीह में पुनः रौनक लौट आई है। ये आचार्यश्री का प्रभाव है, जहां भी अचार्यश्री जाते हैं वहां लोग जुड़ने लगते हैं। चाहे वह जैन हो या चाहे अजैन हो,आचार्यश्री की वाणी का इतना प्रभाव है कि लोग अपने आप उस वाणी को सुनने के लिए आते हैं। एक भजन है कि अमरूद जैसी वाणी वितरागी मुनियों से सुनी जाती है तो, सुनने के बाद जो लोग मौजूद रहते हैं वह अपने हित और अहित के बारे में जान लेते हैं,ये जान लेते हैं कि अपना हित किसमें है और अहित किसमें है। कर्मों को नष्ट किए बिना मुक्ति नहीं मिलती और कर्मों से बचाव होना भी आवश्यक है।आचार्यश्री ने हालही में रायपुर में कई जगह जाकर प्रभावना की है। जहां भी गए वहां लोग चौके लगाते हैं और आहार कराते हैं। सभी जगह हमें भगवान के दर्शन करने का मौका मिला। भगवान के दर्शन मात्र से हमने जो भव भावांतर में पाप किए हैं वो पाप क्षय हो जाते हैं,इसलिए भगवान का दर्शन करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। कार्यक्रम में विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी,महामंत्री राकेश बाकलीवाल सहित समस्त पदाधिकारी एवं बड़ी संख्या में गुरुभक्त मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन ने किया। अंत में सभी ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर आशीर्वाद लिया।


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