इसमें वही लोग शामिल हो पाएंगे जिनकी विवाह को अभी 10 वर्ष से कम समय हुआ है। 6 घंटे के इस सेमिनार में सुखी परिवार-प्रगति का आधार, विवाह क्यु एवं पंचतत्व, एक-दूसरे को जानें, रिश्तों की सराहना, स्नेह और सम्मान जैसे विषयों पर बातचीत होगी। इधर, प्रतिदिन निकाली जा रही प्रभात फेरी की श्रृंखला में बुधवार को शंकर नगर इलाके में जैन समाज के लोगों ने भगवान महावीर के संदेशों का प्रचार किया। यह रैली चिंतामणि पाश्र्वनाथ स्वेतांबर जैन मंदिर से निकली और शंकर नगर में संदीप भवन पहुंचकर समाप्त हुई। फिर यहीं रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया।
छत्तीसगढ़ में जैन धर्म का इतिहास सदियों पुराना है। इससे जुड़ी कई रोचक और दिलचस्प बातें ऐसी भी हैं जिनके बारे समाज के ही बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है। शहर को यही बताने के लिए उत्तरप्रदेश से बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. मुरली नंदन प्रसाद तिवारी 1 अप्रैल को रायपुर आ रहे हैं। वे एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में शाम 7 बजे से आयोजित छत्तीसगढ़ में जैन धर्म का स्थापत्य एवं कला सेमिनार में अपने विचार रखेंगे। यहां प्रोफेसर लक्ष्मी शंकर निगम का भी उद्बोधन होगा। श्री महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के तहत इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इसी दिन दादाबाड़ी में जैन गॉट टैलेंट का आयोजन भी किया गया है। यह कार्यक्रम तीन पालियों में होगा। इसके तहत 3 से 7 साल तक के बच्चों के लिए सुबह 10.30 से 12.30, 8 से 15 साल के लिए दोपहर 12.30 से 2.30 और 16 वर्ष से ऊपर के लिए दोपहर 2.30 से 4.30 बजे के बीच कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इसमें सभी आयु-वर्ग के लोग अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। मुख्य समारोह रात 8.30 बजे से शुरू होगा जो देर रात तक जारी रहेगा।
महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के तहत वल्लभ महिला मंडल ने बुधवार को विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञान वल्लभ आश्रम धार्मिक गेम का आयोजन किया गया। दोपहर 2:00 बजे से आयोजित प्रतियोगिता महिलाओं और बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस आयोजन की खासियत यह रही कि प्रतिभागियों ने खेल खेल में जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में जानकारी हासिल की। वही मानव सेवा के तहत शंकर नगर में जैन मंदिर के सामने संदीप भवन में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। इसके अलावा टर्निंग प्वाइंट के सामने भंडारा लगाकर जरूरतमंदों को भरपेट भोजन भी कराया गया। इसके लाभार्थी प्रेमचंद जी लुणावत परिवार रहे।
]]>दर्शन के उपरांत कन्हैया मित्तल ने मीडिया से कहा कि बाबा महाकाल सभी की मनोकामना पूरी करते हैं। उनके दरबार में आकर कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ती है। मैं भी बाबा महाकाल का भक्त हूं, जो कि मौका मिलते ही उनके दर्शन करने आया हूं। बता दें, भजन गायक कन्हैया मित्तल सोमवार रात उज्जैन में आयोजित खाटू श्याम की एक भजन संध्या करने आए थे।
]]>देश भर से भगवान महाकाल की शरण में वीआईपी श्रद्धालुओं का तांता महाकाल मंदिर में लग रहा है। इसी क्रम में टीम इंडिया के कप्तान रह चुके स्टार बल्लेबाज विराट कोहली पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ महाकाल मंदिर की तड़के होने वाली भस्म आरती में शामिल होने पहुंचे।
]]>गुरुभगवन्तो ने हितोपदेश में बताया कि परमात्मा की प्रतिमा परमात्मा के वियोग में भी भक्तों को प्रभु का साक्षात् मिलन करवाने वाला परम पुष्ट आलम्बन है। उन्होंने बताया कि भगवन से ऐसी प्रार्थना करो की प्रत्येक जन्म में आपके चरण युगल को प्राप्त करके आपकी शरण में स्थान बना लूँ, बस यही एक प्रार्थना, प्रत्येक जन्म में आपकी आज्ञा का पालन करके कर्म रूपी काँटों को निकाल सकूं, मोक्ष में आसान जमा लूं और आत्मा का दर्शन कर सकूं।
गुरुवार को पूरी रात मंदिर के अंदर मंत्रोच्चार एवं प्रतिमा को परमात्मा बनाने का विधान अंजनशलाका पूर्ण हुआ। अंजन शलाका अर्थात ह्रदय सिंहासन पर प्रभु को विराजमान कराने का सफल माध्यम हैं। मध्यरात्रि शुभ मुहूर्त में अधिवासना एवं अंजन निर्माण का कार्य तथा स्वर्ण पात्र में गुरु भगवन्तो को अंजन वोहराई के बाद यह अंजन प्रतिमा में प्राण स्वरुप भरा गया।
आ गई प्रतिष्ठा की महामंगल शुभ बेला
सकल जैन संघ पिछले साढ़े चार वर्ष से जिस घड़ी का इंतजार कर रहा था वह शुभ दिन (शुक्रवार) आ गया। सकल जैन समाज के दिल में बसने वाली एमजी रोड दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा पांच शिखरों की पूजा के साथ प्रात: 5 बजे से प्रारम्भ हो जावेगी। 3 मार्च को प्रात: शुभ लग्न में – पुण्याहं पुण्याहं प्रियनताम प्रियनताम के जय घोष के साथ परमात्मा गद्दीनशीन होंगे, अमर ध्वजा मंदिर के शिखर पर लहरायेगी।
साढ़े चार साल तक मीठा त्याग रखा था, आज पुन: खाना शुरू करेंगे
दादाबाड़ी को वास्तु युक्त बनाने हेतु जैन समाज के बहुत से लोगों ने पिछले साढ़े चार वर्ष से तपस्या की है। मिठाई-शक्कर आदि बहुत सी खाने-पीनेे की वस्तु का त्याग कर रखा था। उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक दादाबाड़ी की नवनिर्मित प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण नहीं कर लेंगे तब तक मीठे का त्याग करेंगे, नित्य उपवास आदि तप किए और आज उस तप का फल संघ के सामने प्रस्तुत है। शुक्रवार को वे पहले श्रद्धालुजनों को लाप्सी व शाही कारबा मीठा खिलायेंगे फिर खुद पुन: खाना शुरू करेंगे।
परमात्मा के स्वर्ग का मंदिर पृथ्वी लोक में आ गया ऐसा लगता है दादाबाड़ी
प्रतिष्ठा याने अंजन शलाका किए हुए परमात्मा का जिन मंदिर में एक ही स्थान पर हमेशा के लिए स्थिरीकरण, तन के आरोग्य का समीकरण, मन की शांति का दूरीकरण, परमात्मा की प्रतिष्ठा सर्व विघ्नों का का नाश करती है, सर्व मंगलों का सृजन करती है, सर्व दोषों का विसर्जन करती है, यदि प्रभु प्रतिमा नीति युक्त धन से निर्मित हो, यदि शासन प्रभावक निष्ठ सूरिदेव का सुयोग हो, यदि प्रतिष्ठा महोत्सव के आयोजकों दानवीर एवं उदार हो, यदि संघ के कार्यकर्ता नम्र तथा सेवाभावी हो तो इस धरती पर स्वर्ग सुख का अवतरण होना और रायपुर जैन समाज ने इसको चरितार्थ कर दिखाया है। हमने पढ़ा है की स्वर्ग से सुन्दर परमात्मा का दरबार होता है और वो आज जैन दादाबाड़ी को देख कर लगता है, श्वेत पाशान से बनी, कोरनि से घडी, जुगनू की तरह चमकते गलीचों की बिछोनी, रंग मंडप के ऊपर नृत्य एवं वाद्ययंत्र लिए देवियों की हवा में अधर प्रतिमाओं, विशाल बिना खम्बो की निर्मित दादाबाड़ी इन सबको देख कर ऐसा लगता है मानो वास्तव में परमात्मा के स्वर्ग का मंदिर पृथ्वी लोक में आ गया है।
जनप्रतिनिधि पहुंचे आर्शिवचन लेने
श्री धर्मंनाथ जिनालय एवं जिनकुशल सूरी दादाबाड़ी प्रतिष्ठा महोत्सव में जनप्रतिनिधियों से लेकर समाज से सभी वर्ग के लोग पहुंच रहे हैं। बुधवार को सांसद सुनील सोनी रत्नपुरी नगरी पहुंचे और आचार्यों से आर्शिवाद लिया। गुरुवार को विधायक विकास उपाध्याय दीक्षा कल्याणक महोत्सव में शामिल हुए।
इसके पश्चात बाल मुमुक्षु समर्थ सुनील जी लेछा एवं मुमुक्षु कु. सुषमा रतन चंद जी कवाड के लिए दीक्षा का मुहूर्त सकल संघ के सामने प्रदान किया गया, जो आगामी तय तिथि पर दीक्षा ग्रहण करेंगे। जैन धर्म में कोई भी दीक्षा स्वयं की, माता पिता एवं मुख्य रिश्तेदारों की आज्ञा होने पर ही दी जाती है। गुरुवार सुबह परमात्मा का दीक्षा वारगोड़ा, मध्य रात्रि को अधिवासना – अंजनविधान होगा। कल ही मंदिर जी की ध्वजा एवं परमात्मा की प्रतिष्ठा करने वाले परिवारों का सम्मान होगा।
गुरु भगवन्तो ने बताया कि भगवान मिलने के बाद स्वंय भगवन बनने की कोशिश के मार्ग पर गुरु भगवन्तो द्वारा बताये रास्ते पर चलना ही भगवान की आगम अनूप पूजा है। जिन मंदिर की ध्वजा साधना के शिखर पर उपासना का स्वर्ण कलश चढ़ता है, तब आत्म मंदिर के ऊपर परमात्मस्वरूप परमानन्द ध्वजा फहरती है। सकल संघ को यह शुभ ध्यान करना चाहिए की हमारी छाया हमारा छत्र हमारा उजाला हे प्रभु आप ही बने रहो।
गच्छाधिपति आचार्यभगवन्तो ने अपने हितोपदेश में बताया कि भौतिक ऐश्वर्य वैभव का त्याग कर अरिहंत परमात्मा इस पावन भूमि पर भारण पक्षी की तरह अप्रमत्त बन कर शेर की तरह विचरण करते हैं। संयम पालन करते समय कर्म सत्ता के सामने परिषह की सेना को जीतते हैं। उपसर्ग कैसा भी क्यों ना आए अंश मात्र भी विचलित नहीं होते। अहर्निश शुभ ध्यान में खड़े रहते हैं, निद्रा का सर्वथा त्याग कर संयम साधना में अटल रहकर घाती कर्मों को हराकर आत्मा के अनंत गुण रूप केवल ज्ञान को प्राप्त करते हैं, इसे ही केवल ज्ञान कल्याणक कहते हैं। देवता समोसरण की रचना करते हैं, त्रिपदी का दान करके गणघरों की स्थापना करते हैं।
गुरुवार का कार्यक्रम
2 मार्च गुरुवार को परमात्मा की दीक्षा विधान प्रात: 5.30 बजे दादाबाड़ी में होगा। रत्नपुरी नगरी साइंस कालेज में सर्वप्रथम परमात्मा की दीक्षा कल्याणक की शोभायात्रा निकाला जायेगा। 10 बजे गच्छाधिपतिश्री का मंगलमय सम्बोधन, 02 बजे वैराग्य से वीतरागता की ओर – प्रभु द्वारा सांवत्सरिक दान, कुलमहत्तरा, माता-पिता, भाई-बहन द्वारा आशीर्वचन, केश लुंचन विधी,मन: पर्यवज्ञान की प्राप्ति। 06.30 बजे – संध्याभक्ति, आरती – मंगलदीपक। 07 बजे गुरुभक्ति – गुरु की महिमा कोई ना जाने (दादावाडी में) जिसे प्रस्तुत करेंगे प्रसिद्ध गायक आशीष मेहता और समूह। (शुभमुहूर्त में अंजन निर्माण एवं पू. गुरुदेव को अंजन वोहराना)। मध्यरात्रि के शुभमुहूत्र्त में-अधिवासना-अंजनविधान, समवसरण रचना, केवलज्ञान कल्याणक विधान, प्रथम देशना। सभी गुरु भगवन्तो द्वारा पूरी रात मंत्रोच्चार द्वारा परमात्मा प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा का विधान किया जायेगा।
]]>गच्छाधिपति एवं आचार्य भगवन्तो ने हितोपदेश में बताया कि अनंत उपकारी अरिहंत परमात्मा को भी कर्म गति के कारण जन्म समय का कष्ट सहना ही पड़ता है। परन्तु यह कष्ट अनेक भव्यात्माओं के हित के लिए होता है। परमात्मा देव लोक से च्यवन कर मनुष्य लोक में आते है और इस जन्म जन्मांतर के भ्रमण से निकल कर सिद्ध अवस्था को प्राप्त करते है, मनुष्य लोक से ही सब गति के द्वार खुले है इसलिए देवेंद्र आदि सभी मनुष्य लोक को पाने के लिए तरसते है। इस अंतिम जन्म के बाद अरिहंत भगवान का कभी जन्म नहीं होता है,वह परम सिद्ध गति को पाकर अजन्मया बन जाते है।
जन्म कल्याणक का मंचन साइंस कॉलेज स्थित रत्नपुरी नगरी में हुआ। आज के जन्म कल्याणक महोत्सव में परमात्मा के जन्म के साथ ही इंद्र का सिंहासन कम्पायमान हुआ। च्यवन के पश्च्चात गर्भवास का समय पूर्ण होने पर त्रिलोकीनाथ का जन्म होता है, उस समय तीनो लोक में आनंद एवं उत्साह फ़ैल जाता है। दिक्कुमारिया अवधिज्ञान से प्रभुजी का जन्म हुआ जानकर वहां आती है तथा सूती कर्म करती है उसके पश्चात इन्द्र अपना कत्र्तव्य जान कर परमात्मा को अपने पांच रूप बना कर मेरु शिखर में स्नात्र महोत्सव करने के लिए ले जाते है। आज अपूर्व खुशी का दिन है जैसे हम अपने नवजात बच्चों को किसी को देने से डरते है उसी प्रकार महाराजा इंद्र भी भगवान को नवजात शिशु के रूप में देखकर किसी को भी देने में डरते है और खुद अपना पांच रूप बना कर एक रूप में परमात्मा को अपने हाथ में लेते है। एक रूप में हाथ से चँवर ढुलाते हैं, एक रूप में धूप रखते है, एक में दीप और शंखनाद करते हुए परमात्मा को मेरु शिखर में ले जाते है और हरिन गामीशी देव को सुघोषा घंटा बजाने का आदेश देते है ताकि सभी देव शीघ्र पधारे और स्नात्र महोत्सव देवताओं के साथ मानते है। रत्नपुरी के मंचन वाले स्नात्र महोत्सव में खारुन माता का शुद्ध जल एवं विभिन्न नदियों के पवित्र शुद्ध जल से परमात्मा का अभिषेक हुआ इस हेतु यहां चल मंदिर बनाया गया है इसमें जैन समाज के 64 इन्द्र सपरिवार मेरुगिरि पर पांडुशिला पर जन्म स्नात्र महोत्सव करते है। इस जन्म कल्याणक महोत्सव को देखने सुनने के सैकड़ों लोग साक्षी बने।
जब मंचस्थ को देखने सुनने में इतना आनंद और उत्साह मिलता है तो अपने कमल नयन से साक्षात् देखने में किता आनंद का अनुभव होगा,अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। नाट्य मंचन बहुत ही अद्भुत रूप से हुआ, ऐसा लगा जैसे कोई अतीत की गौरव गाथा का मंचन हो रहा है।
मंगलवार का कार्यक्रम
जैन मंदिर दादाबाड़ी में प्रात: अठारह अभिषेक विधान, गुरुमूर्ति अभिषेक, अमर ध्वजा के ध्वज दंड एवं कलश का अभिषेक होगा। प्रात: 8 बजे दोनों दीक्षार्थियों के वर्षीदान का भव्य वरघोड़ा एमजी रोड दादाबाड़ी से श्री ऋषभ देव जैन मंदिर सदर बाजार तक निकलेगा। भाई संदीप कोचर (37 वर्ष) एवं कु. प्रज्ञा कोचर (23 वर्ष) की उम्र में दीक्षा ग्रहण करने जा रहे है एवं अपने संसारी संबंध को तोड़कर परमात्मा से संबंध बनाने के मुख्य मार्ग पर निकल पड़े है। रत्नपुरी नगरी साइंस कॉलेज में परमात्मा के जन्म की बधाई प्रियंवदा दासी द्वारा परमात्मा के पिता भानु राजा को दी जावेगी, दीक्षा एवं वर्षीदान की महिमा का मंचन होगा।
मद्महेश्वर तुंग ईश्वर, रुद कल्प महेश्वरम। पंच धन्य विशाल आलय, जय केदार नमाम्यहम… दरअसल पंचकेदार पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है और इसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है। पंचकेदार में पहले केदार के रूप केदारनाथ मंदिर है। द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर, तृतीय केदार के रूप में भगवान तुंगनाथ, चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ और पांचवे केदार के रूप में कल्पेश्वर की पूजा होती है। सभी पंचकेदार भगवान शिव के पवित्र स्थान हैं, जहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पंचकेदार की मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने गुरु, कुल, ब्राह्मणों और भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। ऐसा करने की सलाह उन्हें श्री कृष्ण ने दी थी।
जब बैल का रूप धारण कर विलुप्त हो गए थे शिव
लेकिन भगवान शिव पांडवों द्वारा किये गए कृत्यों से नाराज थे और उन्हें इतनी जल्दी दोषमुक्ति नहीं देना चाहते थे। जब पांडव शिव की तलाश में काशी पहुंचे तो शिव उनसे बचने के लिए हिमालय की ओर चले आये। नारद से इस बात की खबर मिली तो पांडव भी उनका पीछा करते हुए उत्तराखंड आ पहुंचे। लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसी दौरान पांडवों ने देखा कि एक बुग्याल में गाय-बैलों में से एक बैल बाकियों से कुछ अलग है। पांडवों को शक हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया और दो पहाड़ों के बीच अपना पैर फैला दिया। सभी गाय-बैल पैर के नीचे से चले गए, लेकिन भगवान शंकर रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ।
केदारनाथ
इस बीच भीम बैल पर झपटा मार पकड़ने की कोशिश करने लगे तो शिव ने जमीन में गड्ढा किया और जमीन में विलुप्त होने लगे। तब भीम ने बैल की त्रिकोण रूपी पीठ के भाग पकड़ लिया। उसी समय से भगवान शंकर की बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। जिसे पहले केदार के रूप में जाना जाता है। 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जो चार धाम में से भी एक है। माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग आज के नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ। जो पशुपतिनाथ मंदिर के रूप में जाना जाता है।
मध्यमहेश्वर
द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर या मध्यमहेश्वर को पूजा जाता है। यहां बैल रूपी शिव के मध्य भाग (नाभि) की पूजा की जाती है। भगवान शिव के इस मंदिर के कपाट भी निश्चित समय के लिए खुलते हैं। मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया पर खुलते हैं और दीवाली के बाद सर्दियों के समय बंद हो जाते हैं। शीतकाल में जब कपाट बंद होते हैं तो ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान मद्महेश्वर का निवास स्थान होता है।
तुंगनाथ
तृतीय केदार के रूप में जाने जाने वाले तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा के रूप में आराधना होती है। पंचकेदार में से एक तुंगनाथ कई मायनों में खास है। यह मंदिर दुनिया की सर्वोच्च ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है। मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर चंद्रशिला चोटी के नीचे बना है, जो प्राकृतिक सौंदर्यता का अद्भुत प्रतीक है। शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं। इस दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है।
रुद्रनाथ
चतुर्थ केदार रुद्रनाथ चमोली जिले में स्थित है। समुद्रतल से 3554 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है। इसके साथ ही नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में चतुरानन रूप और इंडोनेशिया में भगवान शिव के पंचानन विग्रह रूप की पूजा होती है। शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होते हैं इस कारण गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना होती है।
कल्पेश्वर
पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर मंदिर विख्यात हैं। इसे कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। पंचकेदार में से कल्पेश्वर ही एक मात्र केदार है जो श्रद्धालुओं के लिए सालभर खुला रहता है। शीतकाल में भी भक्त यहां आकर बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर सकते हैं। मान्यता है कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। कल्पेश्वर मंदिर चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित है।
बताया दें मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में स्थित कुबेरेश्वर धाम में पंडित प्रदीप मिश्रा शिव कथावाचन के साथ ही अभिमंत्रित रुद्राक्ष भी बांट रहे हैं। रुद्राक्ष पाने की ख्वाहिश लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लाखों लोग कुबेरेश्वर धाम पहुंचे हैं। लेकिन बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने के चलते यहां हालात बेकाबू हो गए हैं। इन सभी चीजों को देखते हुए पंडित प्रदीप मिश्रा ने कथा के दौरान कहा कि, “बीते रुद्राक्ष महोत्सव में ये सीखने को मिला है कि लाखों रुद्राक्ष आएंगे पर इन्हें रुद्राक्ष महोत्सव, शिवमहापुराण के समय नहीं बांटा जाएगा। अब सालभर में कभी भी आकर रुद्राक्ष लिए जा सकते हैं। कोई फाइल नहीं, बस आकर कह देना कि बाबा का प्रसाद दे दो।”
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निकिता ने कहा कि “संसार में हर इंसान दु:खी है इसलिए हमने अध्यात्म का मार्ग चुना और भगवान शिव को पति मानकर अपना जीवन उन पर न्यौछावर कर रही हूं। जब हमने भगवान शिव से शादी का निर्णय लिया तो हमारे परिवार और दोस्तों ने भी हमारे फैसले को उचित ठहराते हुए हमारा साथ देने का निर्णय किया है।” वहीं निकिता के परिजनों का कहना है कि निकिता के भगवान शंकर से शादी करने पर समाज के लोगों की प्रतिक्रिया सही नहीं है लेकिन अच्छा करने वालों का विरोध तो हमेशा से होता रहा है।
निकिता की शादी करवाने वाले ब्रह्मकुमारी आश्रम से जुड़े लोगों का कहना है कि परमात्मा से एकाकर होने का मार्ग है, ये हम लोगों को बहुत खुशी हो रही है। सांसारिक जीवन त्याग करना बहुत दुष्कर कार्य है और परम्पराओं की धारा के विपरीत जाकर समाज की परवाह न करके मीराबाई की तरह भगवान को अपना पति मान लेना और भी कठिन काम है, लेकिन एमबीए की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी निकिता ने अध्यात्म का मार्ग चुना है।
]]>क्या है पूरा मामला?
बागेश्वर धाम मध्य प्रदेश के छतरपुर में स्थित है। यहां के महाराज धीरेंद्र शास्त्री ‘दिव्य चमत्कारी दरबार’ लगाते हैं। यहां वो दावा करते हैं कि उन्हें आपके बारे में सब पता है। वहां आने वाले लोग पर्ची में अपनी समस्या लिखते हैं और धीरेंद्र शास्त्री उनके बताए बिना ही अपनी पर्ची में उनकी समस्या लिख देते हैं। धीरेंद्र शास्त्री ने जनवरी में ‘श्रीराम चरित्र चर्चा’ नागपुर में आयोजित की थी। ये कथा 13 जनवरी तक चलनी थी। लेकिन 11 जनवरी को ही खत्म हो गई थी। कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की शिकायत के चलते ऐसा हुआ। समिति ने धीरेंद्र शास्त्री पर अंधविश्वास और जादू-टोना को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था।
इसके अलावा अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती भी दी कि अगर वो उनके बीच दिव्य दरबार लगाते हैं और चमत्कार करके दिखाते हैं तो वो उन्हें 30 लाख रुपये देंगे। हालांकि, इन आरोपों पर धीरेंद्र शास्त्री ने दावा किया कि वो कोई अंधविश्वास नहीं फैला रहे हैं और न ही किसी की समस्या दूर कर रहे हैं। इसके बाद से धीरेंद्र शास्त्री के दावों को लेकर देशभर में बहस छिड़ी है। कुछ लोग इसे आस्था का मुद्दा बता रहे हैं, तो कुछ लोग अंधविश्वास बताकर धीरेंद्र शास्त्री पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
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